बाल दुष्कर्म के मामलों में कैसे बढ़ेगा दोषसिद्धि दर? कुछ नीतिगत सुझाव

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बाल दुष्कर्म के मामलों में कैसे बढ़ेगा दोषसिद्धि दर? कुछ नीतिगत सुझाव

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Picture Credits: Imran shaikh & Priyesh Damor

जहाँ उचित प्रशिक्षण के ज़रिये पुलिस संवेदलशील रूप से पीड़ित को इंटरव्यू करना सीख सकती है,वहीँ पोक्सो मामलों की इन्वेस्टीगेशन करने के लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर्स बना कर उन्हें पुलिस प्रशिक्षण गाइड में डालने चाहिए ताकि सभी इन्वेस्टीगेशन अफसर इन मेथड्स को अपना सके और उनका उपयोग कर सके

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बाल दुष्कर्म के मामलों में कैसे बढ़ेगा दोषसिद्धि दर? कुछ नीतिगत सुझाव

rochinby Vinita Kewlani   
31 March 2020

हाल ही में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने वार्षिक ‘क्राइम इन इंडिया (2018)’ रिपोर्ट निकाली, जिसके अनुसार 2017 की तुलना में पोक्सो एक्ट के अंदर दर्ज हुए मामलों में 18 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई| लेकिन बाल दुष्कर्म के मामलों में वृद्धि के बावजूद भी दोषसिद्धि दर 2016 के अंत में केवल 28 प्रतिशत ही रहा| ये निराशा जनक आंकड़े एक बेहत गंभीर सवाल उठाते है: किन उपायों को अपनाने से पोक्सो के मामलों में दोषसिद्धि दर बढ़ेगा?
इस लेख में मैंने सेण्टर फॉर क्रिमिनोलॉजी & पब्लिक पॉलिसी (CCPP) और पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (ग्रह मंत्रालय) के नेतृत्व में हो रही एक राष्ट्रीय स्तर अध्ययन के प्रारंभिक अवलोकन पेश किये है, जोकि बाल दुष्कर्म के मामलों में दोषसिद्धि बढ़ाने हेतु अनुकूल परिस्थियों से सम्बंधित है| यह लेख मूल रूप से डॉ. हनीफ कुरैशी (आई.जी. पी, हरियाणा पुलिस & मेंटर, CCPP) एवं आर. रोचिन चंद्रा (प्रैक्टिसिंग प्रोफेसर & निदेशक, CCPP) ने 5 मार्च, 2020 को ‘द टेलीग्राफ’ (इंग्लिश) में प्रकाशित किया था|इस लेख को हिंदी में रूपांतरण करने के लिए मैंने दोनों ही लेखकों की सहमति प्राप्त की ताकि इसमें शामिल नीतिगत विचार हिंदी पाठकों एवं चिन्ताशील निर्णयकर्ताओं तक प्रभावी रूप से पहुँच सके|

चाइल्ड फ्रेंडली इन्वेस्टीगेशन

अपराधिक घटना की महत्वपूर्ण जानकारी हासिल करना और पीड़ित से अपनी आपबीती का पूरा खुलासा प्राप्त करना, एक सफल इन्वेस्टीगेशन की निशानी है| लेकिन परंपरागत तौर से पुलिस द्वारा पीड़ित को पूछे जाने वाले प्रश्न जैसे, कौन, क्या, कब, कहाँ, कैसे आदि आघातीत बच्चों के लिए आपत्तिजनक स्थिति पैदा कर सकता है| ऐसा इसलिए, क्यूंकि कई पुलिस अफसरों के पास भावनात्मक रूप से कमज़ोर बच्चों को संभालने की ‘सेंसिटिविटी ट्रेनिंग’ नहीं होती| जिसके फलस्वरूप, पीड़ित को इंटरव्यू करने का लहजा इंटेरोगेशन में बदल जाता है और पीड़ित अपनी शिकायत वापस ले लेने पर मज़बूर हो जाता है| और तो और, बच्चे का मौन रहना भी पुलिस के दिमाग में संदेह पैदा कर सकता है कि पीड़ित की फ़रियाद झूठी होगी| ऐसा न होने देने के लिए, लेखकों ने सलाह दी है की पुलिस को अपनी इन्वेस्टीगेशन प्रक्रिया, पीड़ित को सहानुभूति से सुनकर,पीड़ित की कठिनाइयों को ध्यान रखते हुए, उचित रूप से संवाद करके,और सरल प्रश्न पूछकर शुरू करनी चाहिए| यह तरीका पुलिस को बच्चे के साथ तालमेल बढ़ाने में एवं सुविधाजनक रूप से उनकी टेस्टीमोनी प्राप्त करने में मदद करेगा| इसके अलावा, जहाँ उचित प्रशिक्षण के ज़रिये पुलिस सवेंदनशीलता के साथ इंटरव्यू लेना सीख सकती है, वहीँ पोक्सो मामलों की इन्वेस्टीगेशन करने के लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर्स बनाये जाने चाहिए और उन्हें पुलिस प्रशिक्षण गाइड में डालने चाहिए ताकि सभी इन्वेस्टीगेशन अफसर इन मेथड्स को अपना सके और उनका उपयोग कर सके|

परंपरागत तौर से पुलिस द्वारा पीड़ित को पूछे जाने वाले प्रश्न जैसे, कौन, क्या, कब, कहाँ, कैसे आदि आघातीत बच्चों के लिए आपत्तिजनक स्थिति पैदा कर सकता है| ऐसा इसलिए, क्यूंकि कई पुलिस अफसरों के पास भावनात्मक रूप से कमज़ोर बच्चों को संभालने की ‘सेंसिटिविटी ट्रेनिंग’ नहीं होती| जिसके फलस्वरूप, पीड़ित को इंटरव्यू करने का लहजा इंटेरोगेशन में बदल जाता है और पीड़ित अपनी शिकायत वापस ले लेने पर मज़बूर हो जाता है| और तो और, बच्चे का मौन रहना भी पुलिस के दिमाग में संदेह पैदा कर सकता है कि पीड़ित की फ़रियाद झूठी होगी|

रोल स्पेसिफिक ट्रेनिंग

वर्त्तमान में पुलिस अफसरों के पास बाल दुष्कर्म इन्वेस्टीगेशन करने हेतु जिस तरह की प्रशिक्षण उपलब्ध है, वो अप्रयाप्त होने के साथ साथ अनुत्पादक भी है| इसलिए जरूरी है की पुलिस को बाल यौन शोषण के मामलों की इन्वेस्टीगेट करने के लिए एक विशेष प्रशिक्षण दिया जाये जिसमे बच्चों के याद रखने की और उनकी ज्ञान सम्बन्धी क्षमताएं, बाल योन शोषण की मिथकें और वास्तविकताएं,बच्चों के अधिकार और उनकी ज़रूरतें, तथ्यों और कल्पना के बीच भेद, बाल यौन शोषण की गतिशीलता, यौन अपराधियों की विशेषतायें और उनका व्यवहार, पुलिस द्वारा गरिमा और करुणा का प्रदर्शन, गुप्त अंगों की चर्चा, बच्चों का माध्यमिक उत्पीड़न और यौन शोषण प्रकटीकरण प्रक्रिया आदि विषय शामिल हो और इसे बुनियादी प्रशिक्षण के दौरान ही प्रदान किया जाएं।
समयानुसार रिफ्रेशर प्रोग्राम कराने से पुलिस अफसर बाल शोषण जगत में हो रहे घटनाक्रम से अद्यतन रहेंगे, जिससे उनकी पोक्सो एवं आईपीसी (जैसे कानूनों) को आह्वान करने की जागरूकता भी बढ़ेगी| इसके लिए सरकार को पुलिस प्रशिक्षण एवं बाल संरक्षण के क्षेत्रों में आर्थिक निवेश करना होगा व पुलिस नेतागण को बाल शोषण इन्वेस्टीगेशन को उचित महत्व देना होगा| इसके अलावा, राजकीय बाल संरक्षण आयोग,आपराधिक न्याय थिंक टैंक्स के साथ साझेदारी कर, निर्भया फंड का बखूबी इस्तेमाल कर सकता है, जिससे बाल दुष्कर्म के मामलों में पुलिस प्रतिक्रिया को सुसंगत करने हेतु प्रोटोकॉल विकसित किये जा सके|

समयानुसार रिफ्रेशर प्रोग्राम कराने से पुलिस अफसर बाल शोषण जगत में हो रहे घटनाक्रम से अद्यतन रहेंगे, जिससे उनकी पोक्सो एवं आईपीसी (जैसे कानूनों) को आह्वान करने की जागरूकता भी बढ़ेगी| इसके अलावा, राजकीय बाल संरक्षण आयोग,आपराधिक न्याय थिंक टैंक्स के साथ साझेदारी कर, निर्भया फंड का बखूबी इस्तेमाल कर सकता है, जिससे बाल दुष्कर्म के मामलों में पुलिस प्रतिक्रिया को सुसंगत करने हेतु प्रोटोकॉल विकसित किये जा सके|

विक्टिम ओरिएंटेड प्रॉसिक्यूशन

न्यूरोबायोलोजी और ट्रॉमा पर हुई खोज से यह पता चलता है की जब इंसान किसी दर्दनाक घटना को याद करता है, तो उसका प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स – जोकी निर्णय लेने और याद रखने की क्षमता रखता है – वो अस्थायी रूप से ख़राब हो जाता है| इसीलिए दुष्कर्म के बारे में पूछे जाने पर पीड़ित का मौन रहना सामान्य है| परन्तु यह मौन प्रतिक्रिया जज को उलझा देती है, जिससे ऐसा प्रतीत होता है की पीड़ित झूठ बोल रहा है| अतः यह ज़रूरी है की हमारे जजों को जेंडर-बेस्ड वायलेंस पर आघात-सूचित प्रशिक्षण दिया जाए|
पोक्सो के मामलों में प्रॉसिक्यूशन द्वारा केस की प्रस्तुति ठीक से न होना और उनके तर्क में ताकत न होना भी दोषसिद्धि दर के गिरावट का एक मुख्य कारण है| इस समस्या का समाधान करने के लिए प्रॉसिक्यूशन को कानून व बाल मनोविज्ञान के क्षेत्रों में उन्नत प्रशिक्षण देना होगा, ताकि वे केस के हिसाब से गवाह को तैयार कर सके, क्रॉस-एग्जामिनेशन के दौरान बाल पीड़ितों से सकारात्मक जवाब प्राप्त कर सके, उचित तथ्यों और परिस्थितियों के बारे में बोल पाएं, मेडिकल रिपोर्ट की अनुपस्थिति में बच्चे की गवाई और पुष्टिकारक प्रमाण को महत्व दे, और अदालत में उत्पन्न होने वाले अन्य मुद्दों को प्रभावी ढंग से निपट सके| इसके साथ, सरकारी वकीलों द्वारा लड़े गए हर एक पोक्सो केस में दोषमुक्ति के कारण अनिवार्य रूप से प्रस्तुत करने की प्रथा उजागर करनी होगी, ताकि उनकी जवाब देहि (जिम्मेदारी!) बढ़ाई जा सके|

प्रॉसिक्यूशन को कानून व बाल मनोविज्ञान के क्षेत्रों में उन्नत प्रशिक्षण देना होगा, ताकि वे केस के हिसाब से गवाह को तैयार कर सके, क्रॉस-एग्जामिनेशन के दौरान बाल पीड़ितों से सकारात्मक जवाब प्राप्त कर सके, उचित तथ्यों और परिस्थितियों के बारे में बोल पाएं, मेडिकल रिपोर्ट की अनुपस्थिति में बच्चे की गवाई और पुष्टिकारक प्रमाण को महत्व दे, और अदालत में उत्पन्न होने वाले अन्य मुद्दों को प्रभावी ढंग से निपट सके|

पक्ष द्रोही साक्षी पर काबू पाना

कुछ समय पहले, नेशनल लॉ स्कूल, बंगलोर एक रिपोर्ट ने एक रिपोर्ट निकाली जिसमे 2013 से लेकर 2015 के बीच 667 पोक्सो जजमेंट का विश्लेषण किये गए| इस रिपोर्ट के अनुसार 67.5 प्रतिशत पोक्सो मामलों में पीड़ित होस्टाइल हो गए और केवल 26.7 प्रतिशत केसों में आरोपी के खिलाफ गवाई दी गयी| कुछ विशेषज्ञों ने यह भी बताया की लम्बी खींचने वाली कार्यवाही,आरोपी को पीड़ित व पीड़ित के परिवार पर केस वापस लेने का दवाब बनाने हेतु काफी समय देती है और अगर पीड़ित आर्थिक रूप से कमज़ोर है, तो उनको डराना धमकाना व उनके साथ ज़ोर-जबरदस्ती करना और भी आसान हो जाता है|
इस समस्या को तीन तरीकों से सुलझाया जा सकता है। पहला, जिन घटनाओं में आरोपी घर का ही व्यक्ति है, उन मामलों में बच्चे को चिल्ड्रनस होम में शरण देने की जगह, इंट्रा-एजेंसी कोआर्डिनेशन एवं प्लानिंग द्वारा पीड़ित की साक्ष्य दर्ज करने की समय सीमा का सख्ती से पालन किया जाए और उसे तीस दिन के भीतर दर्ज करने की चेस्टा की जाए| दूसरा, जिन मामलों में अभियुक्त परिवार का सदस्य नहीं है, वहां पीड़िता को धमकी और प्रतिशोध के खिलाफ लंबे समय की सुरक्षा का प्रावधान होना चाहिए|।तीसरा, बाल गवाहों की क्रॉस एग्जामिनेशन के दौरान न्यायाधीशों को अपने अधिकारों का उपयोग कर अनुचित प्रश्नों पर रोक लगाना चाहिए और लिखित एवं मौखिक रूप से पूछे जाने वाले प्रश्नों की अनुमति देने में अपना न्यायिक विवेक उपयोग करना चाहिए|

बाल गवाहों की क्रॉस एग्जामिनेशन के दौरान न्यायाधीशों को अपने अधिकारों का उपयोग कर अनुचित प्रश्नों पर रोक लगाना चाहिए और लिखित एवं मौखिक रूप से पूछे जाने वाले प्रश्नों की अनुमति देने में अपना न्यायिक विवेक उपयोग करना चाहिए|

इसके अलावा, कई अन्य कारक जैसे की नवीनतम तकनीकों वाली फोरेंसिक प्रयोगशाला, मेडिको-लीगल परीक्षा के लिए स्पेशलिस्ट डॉक्टर, सबूतों का उचित संग्रह, बचाव और विश्लेषण, पीड़ितों को विधिक एवं मनोविज्ञानिक सहायता सेवाएं और कमजोर पीड़ित बयान कक्ष, सजा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है|


ABOUT THE AUTHOR
 

rochin Vinita Kewlani
Vinita Kewlani is a qualitative criminologist and policy research fellow at the Center for Criminology & Public Policy, India.

@kewlanivinita

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